कालसर्प दोष पूजा कब करानी चाहिए?

कालसर्प दोष पूजा कब की जाती है? जाने पूजा-खर्च उपाय और लाभ

कालसर्प दोष पूजा एक शक्तिशाली अनुष्ठान है, जो जीवन की बाधाओं को दूर करने और सकारात्मकता लाने में लाभकारी है। इस पूजा को सही समय और शुभ तिथियों में करने से इसके लाभ कई गुना बढ़ जाते हैं। चाहे आप नाग पंचमी, महाशिवरात्रि, या अपनी कुंडली के आधार पर यह पूजा करें, शुभ मुहूर्त और सही विधि का पालन करना महत्वपूर्ण माना जाता है।

कालसर्प दोष पूजा भगवान शिव, नाग देवता, और अन्य देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावी उपाय है, जो इस दोष के प्रभाव को कम करता है। लेकिन इस पूजा को सही समय पर करना इसके लाभ को कई गुना बढ़ा देता है। आइए जानते हैं कि उज्जैन में कालसर्प दोष पूजा कब करनी चाहिए?

उज्जैन में कालसर्प दोष पूजा कब होती है? शुभ तिथि जानना क्यो है जरूरी?

कालसर्प दोष पूजा उज्जैन

कालसर्प दोष पूजा के लिए शास्त्रों और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से कुछ विशेष समय और शुभ तिथियाँ बताई गई हैं। जो इस पूजा को और प्रभावी बनाती है, ये शुभ तिथियाँ निम्नानुसार है:

1. नाग पंचमी के दिन: नाग देवता की विशेष कृपा प्राप्ति

नाग पंचमी का दिन नाग देवता की पूजा के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि कालसर्प दोष राहु और केतु से संबंधित है, जो सर्प स्वरूप माने जाते हैं। इस दिन पूजा करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं और दोष के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं। यह पूजा विशेष दिन जैसे:

  • श्रावण मास की शुक्ल पंचमी तिथि पर।
  • विशेष रूप से सुबह के शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए।
    लाभ: यह पूजा आध्यात्मिक शांति और ग्रह दोष निवारण में सहायक है।

2. महाशिवरात्रि: भगवान शिव की कृपा का विशेष अवसर

कालसर्प दोष के निवारण में भगवान शिव की पूजा अत्यंत प्रभावी मानी जाती है, क्योंकि शिवजी ने नागों को अपने गले में धारण किया है। महाशिवरात्रि का दिन उनकी कृपा प्राप्त करने का सबसे शुभ अवसर है। इस दिन की गई पूजा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है।

  • महाशिवरात्रि की रात, विशेष रूप से चार प्रहरों में।
  • दिन के शुभ मुहूर्त में शिव मंदिर में पूजा।
    इस दिन रुद्राभिषेक के साथ कालसर्प दोष पूजा करें और शिवलिंग पर काले तिल अर्पित करें, जो राहु-केतु के प्रभाव को कम करता है। यह पूजा गंभीर रोगों और मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाती है।

3. अमावस्या: ग्रह दोषों को शांत करने का समय

अमावस्या का दिन ग्रह दोषों, विशेष रूप से राहु और केतु के प्रभाव को कम करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस दिन कालसर्प दोष पूजा करने से नकारात्मक ऊर्जा का समापन होता है।

  • प्रत्येक माह की अमावस्या, विशेष रूप से शनैश्चरी या सोमवती अमावस्या को यह पूजा की जा सकती है।
  • सूर्यास्त के बाद या रात के समय।
    इस दिन अपने पूर्वजों (पितरों) के लिए भी तर्पण करें, क्योंकि कालसर्प दोष कभी-कभी पितृ दोष से भी जुड़ा होता है। यह पूजा को और प्रभावी बनाता है।
    लाभ: यह पूजा पारिवारिक समस्याओं और आर्थिक बाधाओं को दूर करती है।

4. ज्योतिषीय सलाह के आधार पर: व्यक्तिगत कुंडली के अनुसार

कालसर्प दोष का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में अलग-अलग होता है। ज्योतिषी की सलाह से शुभ मुहूर्त और तिथि चुनना इस पूजा को और प्रभावी बनाता है। कालसर्प के 12 प्रकारो का प्रभाव अलग-अलग होता है।

  • ज्योतिषी द्वारा सुझाए गए शुभ नक्षत्र, जैसे अनुराधा, ज्येष्ठा, या रोहिणी में।
  • राहु या केतु की दशा/अंतर्दशा के दौरान।
    पूजा से पहले अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाएँ और दोष के प्रकार (जैसे अंनत, कुलिक, वासुकी आदि) के आधार पर विशिष्ट मंत्रों का जाप करें।
    लाभ: यह पूजा व्यक्तिगत समस्याओं, जैसे करियर या विवाह में रुकावटों, को हल करने में सहायक है।

5. जीवन के महत्वपूर्ण अवसरों पर: नई शुरुआत के लिए

कालसर्प दोष पूजा नई शुरुआत, जैसे नौकरी, व्यवसाय, विवाह, या गृह प्रवेश के समय करने से जीवन में सकारात्मकता आती है। जीवन की नई शुरुआत कालसर्प दोष पूजा के साथ अवश्य करें विशेष फल प्राप्त होगा।

  • जन्मदिन, विवाह, या नए कार्य की शुरुआत के समय।
  • शुभ मुहूर्त में, विशेष रूप से सोमवार या बुधवार को।
    कालसर्प दोष पूजा के बाद दान, जैसे काले तिल, काले कपड़े, या उड़द की दाल, किसी जरूरतमंद को दें। यह दोष के प्रभाव को कम करता है।
    लाभ: यह पूजा जीवन में सफलता और स्थिरता लाती है।

6. संकटकाल में: गंभीर परिस्थितियों के लिए

गंभीर बीमारी, आर्थिक संकट, या पारिवारिक समस्याओं के समय कालसर्प दोष पूजा करना विशेष रूप से लाभकारी होता है। यह पूजा मानसिक तनाव और शांति के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण और लाभकारी होती है।

  • गंभीर बीमारी या सर्जरी से पहले/बाद में।
  • किसी बड़े संकट, जैसे कानूनी विवाद या वित्तीय हानि के समय।
    पूजा के बाद अपने इष्टदेव को याद करें और पूजा स्थल पर एक छोटा सा नाग-नागिन का जोड़ा (चाँदी या मिट्टी का) स्थापित करें।
    लाभ: यह पूजा संकटों से मुक्ति और मानसिक शांति प्रदान करती है।

कालसर्प दोष पूजा की विधि क्या है?

कालसर्प दोष पूजा को निम्नलिखित तरीके से किया जाता है:

  1. शुद्धिकरण: स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
  2. शिवलिंग और नाग देवता की स्थापना: शिवलिंग और नाग-नागिन के जोड़े की मूर्ति स्थापित करें।
  3. पूजा सामग्री: दूध, दही, शहद, घी, बिल्वपत्र, काले तिल, फूल, धूप, और चंदन तैयार करें।
  4. मंत्र जाप: रुद्राक्ष माला से महामृत्युंजय मंत्र, रुद्र सूक्त, या काल सर्प दोष निवारण मंत्र का जाप करें। सामान्यतः 108 या 1,25,000 बार जाप किया जाता है।
  5. अभिषेक: शिवलिंग और नाग देवता पर पंचामृत और गंगाजल से अभिषेक करें।
  6. हवन: पंडित की देखरेख में हवन करें और प्रत्येक मंत्र के साथ “स्वाहा” कहकर आहुति दें।
  7. दान और प्रसाद: पूजा के अंत में काले तिल, उड़द, या काले कपड़े का दान करें और प्रसाद वितरित करें।

कालसर्प दोष पूजा उज्जैन में क्यों कराएं?

उज्जैन, भगवान महाकाल की नगरी, एक प्राचीन तांत्रिक और वैदिक सिद्ध स्थल है। यहां कालसर्प दोष पूजा कराना इसलिए फलदायी माना जाता है क्योंकि यहाँ महाकालेश्वर मंदिर की शक्ति, त्रिवेणी संगम और काल भैरव स्थल के समीप पूजा सम्पन्न करायी जाती है, अनुभवी, वैदिक और योग्य पंडितो द्वारा पूजन किया जाता है, संकल्प, रुद्राभिषेक, राहु-केतु जाप और हवन सहित संपूर्ण विधान सम्पन्न कराया जाता है।

कालसर्प दोष पूजा कराने से क्या-क्या लाभ मिलते है?

उज्जैन में कालसर्प दोष पूजा पूरे विधि-विधान के साथ अनुभवी पंडितो की उपस्थिती में सम्पन्न करने पर निम्नलिखित लाभ देखने को मिलते है:

  1. ग्रह दोष निवारण: राहु और केतु के प्रभाव को कम करता है।
  2. आर्थिक स्थिरता: आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
  3. स्वास्थ्य लाभ: गंभीर रोगों और मानसिक तनाव से राहत मिलती है।
  4. पारिवारिक सुख: रिश्तों में सामंजस्य और शांति।
  5. करियर में प्रगति: नौकरी और व्यवसाय में सफलता प्राप्त होती है।

उज्जैन में कालसर्प दोष पूजा बुकिंग कैसे करें?

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